गाँधी, अटल से नेता है, फिर भी देश में स़ब होता है
दिल्ली कभी रोती है, मुम्बई कभी सोता है
दिल्ली कभी रोती है, मुम्बई कभी सोता है
सांसद में तो खूब लड़े, कभी घर में भी झाको यारो
कितना देश को लूटोगे, कभी तो कुछ करो गद्दारों
सरकार कि बुरी यह लाचारी है,
कभी कुछ ना करना इनकी अच्छी बीमारी है
कब तक लोग डर के जियेंगे अपने ही देश में
हर इन्सान बैठा है भेड़िए की बेष में
देश की जनता रो रही अपने ही पहरेदारो से,
रोज खून की होली होती गोली की बौछारों से,
अब हम हट जायेंगे अहिन्षा की बाहों से
जाना होगा कुछ और दिन क्रांति की राहों से,
क्योकि देश तो आखिर हमारा है
जब तक जण गण मन का नारा है।
प्रशे
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